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शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष (Shukla Paksha & Krishna Paksha) के बीच का अंतर समझना धार्मिक और ज्योतिष दोनों दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। हिंदू परंपरा अनुसार, कुछ विशिष्ट दिनांक, जिन्हें तिथि (Tithi) कहा जाता है, विभिन्न धार्मिक कार्यों को करने के लिए शुभ मुहूर्त या दिवस के रूप में नामित की गयी हैं। शुक्ल पक्ष तिथि और कृष्ण पक्ष तिथि लाभकारी मुहूर्त या शुभ मुहूर्त के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है।पक्ष क्या है? (What is Paksha?)
प्रत्येक चंद्र मास को दो पक्षों में विभाजित किया जाता है। एक चंद्र पक्ष एक पखवाड़ा होता है, जो लगभग 14 दिन का है। पक्ष शब्द का शाब्दिक अनुवाद है “पहलु।” ज्योतिषीय घटनाओं के दृष्टिकोण से, एक पक्ष किसी माह के चंद्र की अवस्था के संदर्भ में है। प्रत्येक चंद्र पक्ष 15 दिनों का होता है और इस प्रकार हम पाते है की एक माह में चंद्र के दो पक्ष होते हैं। खगोलीय गणनाओं के अनुसार चंद्र एक दिन में 12 डिग्री भ्रमण करता है। यह पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करने में तीस दिनों का समय लेता है। हर दो सप्ताह में होने वाला यह चंद्र पक्ष विभिन्न प्रकार के धार्मिक आयोजनों के लिए शुभकारी होता है।वैदिक ग्रंथों में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष का महत्व (Significance of Shukla Paksha and Krishna Paksha)
पुरातन वैदिक शास्त्रों और ग्रंथो के अनुसार किसी भी शुभ कार्य या कारज को शुरू करने के लिए पक्ष को एक महत्वपूर्ण कारक माना गया है। चूंकि पक्ष चंद्र की अवस्थाओं पर निर्भर करते हैं, इसलिए यह किसी विशेष घटना या कार्य की सफलता या असफलता को भी निर्धारित करता है, इसी कारण दोनों पहलुओं पर विचारणा करके ही शुभ कार्यों की तिथि निर्धारित की जाती है।कृष्ण पक्ष क्या है? (What is Krishna Paksha?)
कृष्ण पक्ष पूर्णिमा (पूनम) से अमावस्या (मावस) के बीच शुरू होता है जब चंद्र की कला घटने लगती है। कृष्ण पक्ष का नाम भगवान श्रीकृष्ण के नाम पर रखा गया है क्योंकि भगवान कृष्ण श्याम वर्ण के है, इसलिए चंद्र का लुप्त होना कृष्ण पक्ष के रूप में जाना जाता है। कृष्ण पक्ष पूर्णिमा, प्रतिपदा से लेकर चतुर्दशी तक 15 दिनों का होता है।Read about Purnima Vrat
कृष्ण पक्ष के पीछे की कथा
कृष्ण पक्ष के साथ कई कथाएं जुड़ी हुई हैं। शास्त्रों में वर्णित ऐसी ही एक कथा दक्ष प्रजापति और चंद्र के बारे में वर्णित है। दक्ष प्रजापति की सत्ताईस पुत्रियाँ थीं जिनका विवाह चंद्र से हुआ था। ये सत्ताईस कन्याएं वास्तव में सत्ताईस नक्षत्र (Nakshatras) थीं और इन नक्षत्रों में रोहिणी ही थीं जो चंद्र को सबसे अधिक प्रिय थी। इस कारण चंद्र अपनी अन्य पत्नियों के प्रति उदासीन रहते थे, जिससे वे क्रुद्ध हो गयी थी। उन्होंने अपने पिता से चंद्र के उदासीनता की शिकायत की। तब दक्ष ने चंद्र को फटकार लगाई और कहा कि वह अन्य पत्नियों के प्रति अपना दृष्टिकोण बदल ले। इसकी अनदेखी करते हुए चंद्र का अपनी अन्य पत्नियों के प्रति दृष्टिकोण नहीं बदला और वह उनकी उपेक्षा करने लगे। दक्ष के अनुरोध को ना मानने के चंद्र के हठ को देखकर, दक्ष ने तब क्रोधित होकर चंद्र को श्राप दिया कि उनके आकार और प्रभा का ऱ्हास होगा और अंततः वह लुप्त हो जाएंगे। इस प्रकार से शुरू हुआ था कृष्ण पक्ष का चरण।शुक्ल पक्ष क्या है? (What is Shukla Paksha?)
हम अमावस्या (मावस) से पूर्णिमा (पूनम) तक की अवधि को शुक्ल पक्ष कहते हैं। अन्य शब्दों में, चंद्र की बढ़ती कला की अवधि को शुक्ल पक्ष की अवधि के रूप में वर्णित किया जाता है। जब शुक्ल पक्ष पूर्णिमा पर समाप्त होता है, तो हम आकाश में सर्वाधिक दीप्तिमान और पूर्ण चंद्र देखते हैं। संस्कृत में शुक्ल का अर्थ होता है उज्ज्वल। यह भी भगवान विष्णु का ही एक नाम है। शुक्ल पक्ष 15 दिनों का होता है, जिसमें प्रत्येक दिन कोई त्यौहार या संयोग होता है। ये 15 दिन अमावस्या, प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी और चतुर्दशी कहलाते हैं। Read more about Amavasya: The Time of Spiritual and Emotional Correctionशुक्ल पक्ष के पीछे की पौराणिक कथा या दंत कथा
दक्ष प्रजापति के चंद्र को श्राप देने के बाद, चंद्र निस्तेज होने लगे और अपने अंत के समीप आ रहे थे। शाप से मुक्ति पाने के लिए, चंद्र ने भगवान शिव की पूजा-आराधना की और दीर्घ समय तक कठोर तपस्या की। चंद्र की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपने शीश पर स्थान दिया। भगवान शिव की कृपा से चंद्र अपनी प्रभा पूर्ववत प्राप्त करने लगे; चूँकि, दक्ष के श्राप की अवहेलना नहीं हो सकती थी, इसलिए चंद्र को कला में बढ़ने और घटने के चक्र को प्रत्येक 15 दिनों में विभाजित किया गया। इस प्रकार, चंद्र का शुक्ल पक्ष से कृष्ण पक्ष तक और इसके विपरीत अवस्थाओं के अनुसार इन अवधियों का प्रारंभ हुआ।कौन सा पक्ष शुभ माना जाता है?
चंद्र प्रकाश और ऊर्जा के संदर्भ में, शुक्ल पक्ष शुभ समारोहों और आयोजनों के लिए अनुकूल माना जाता है, वही कृष्ण पक्ष प्रतिकूल माना जाता है। इसलिए, कृष्ण पक्ष में शुरू किए गए कार्यों के विपरीत, शुक्ल पक्ष के दौरान किया गया कोई भी कार्य सफल और इष्टतम समापन तक पहुंचता है। इसीलिए, विवाह, और अन्य शुभ अनुष्ठान जैसे गृह प्रवेश, गृह निर्माण आदि शुक्ल पक्ष में किए जाते हैं। ज्योतिषीय दृष्टि से शुक्ल पक्ष की दशमी और कृष्ण पक्ष की पंचमी के बीच की अवधि शुभ मानी जाती है। इस अवधि में, चंद्र की ऊर्जा चरमोच्च पर होती है, और शुभ और अशुभ समय या मुहूर्त की भविष्यवाणी करने में यह धारणा महत्वपूर्ण है।Get Free Marriage Predictions in Hindi
कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में अंतर (Difference between Krishna Paksha and Shukla Paksha)
शुक्ल पक्ष अमावस्या से शुरू होकर पूर्णिमा पर समाप्त होता है, जबकि कृष्ण पक्ष अमावस्या से शुरू होकर पूर्णिमा पर समाप्त होता है।शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथियां (Ekadashi Dates for Shukla Paksha and Krishna Paksha)
एकादशी भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने के लिए महत्वपूर्ण उपवास मानी जाती हैं, और यह अनुष्ठान महीने में दो बार किया जाता है, एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। वर्ष 2022 के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथियां नीचे दी गई हैं।माह | पक्ष | एकादशी | 2022 (समय) |
जनवरी (January) | शुक्ल पक्ष | पौष पुत्रदा एकादशी | जनवरी 12, मध्याह्न 4:49 जनवरी 13, सायंकाल 7:33 |
कृष्ण पक्ष | षट्तिला एकादशी | जनवरी 28, प्रातः 2:16 जनवरी 28, रात्रि 11:36 | |
फ़रवरी (February) | शुक्ल पक्ष | जया एकादशी | फ़रवरी 11, मध्याह्न 1:52 फ़रवरी 12, मध्याह्न 4:27 |
कृष्ण पक्ष | विजया एकादशी | फ़रवरी 26, प्रातः 10:39 फ़रवरी 27, प्रातः 8:13 | |
मार्च (March) | शुक्ल पक्ष | आमलकी एकादशी | मार्च 13, प्रातः 10:22 मार्च 14, रात्रि 12:05 |
कृष्ण पक्ष | पापमोचनी एकादशी | मार्च 27, सायंकाल 6:04 मार्च 28, मध्याह्न 4:15 | |
अप्रैल (April) | शुक्ल पक्ष | कामदा एकादशी | अप्रैल 12, प्रातः 4:30 अप्रैल 13, प्रातः 5:02 |
कृष्ण पक्ष | वरुथिनी एकादशी | अप्रैल 26, प्रातः 1:38 अप्रैल 27, प्रातः 12:48 | |
मई (May) | शुक्ल पक्ष | मोहिनी एकादशी | मई 11, सायंकाल 7:31 मई 12, सायंकाल 6:52 |
कृष्ण पक्ष | अपरा एकादशी | मई 25, प्रातः 10:32 मई 26, प्रातः 10:54 | |
जून (June) | शुक्ल पक्ष | निर्जला एकादशी | जून 10, प्रातः 7:26 जून 11, प्रातः 5:45 |
कृष्ण पक्ष | योगिनी एकादशी | जून 23, रात्रि 9:41 जून 24, रात्रि 11:12 | |
जुलाई (July) | शुक्ल पक्ष | शयनी एकादशी | जुलाई 09, मध्याह्न 4:39 जुलाई 10, मध्याह्न 2:14 |
कृष्ण पक्ष | कामिका एकादशी | जुलाई 23, प्रातः 11:27 जुलाई 24, मध्याह्न 1:46 | |
अगस्त (August) | शुक्ल पक्ष | श्रवण पुत्रदा एकादशी | अगस्त 07, रात्रि 11:51 अगस्त 08, रात्रि 9:00 |
कृष्ण पक्ष | अजा एकादशी | अगस्त 22, प्रातः 3:36 अगस्त 23, प्रातः 6:07 | |
सितंबर (September) | शुक्ल पक्ष | पार्श्व एकादशी, वैष्णव पार्श्व एकादशी | सितंबर 06, प्रातः 5:54 सितंबर 07, प्रातः 3:05 |
कृष्ण पक्ष | इंदिरा एकादशी | सितंबर 20, रात्रि 9:26 सितंबर 21, रात्रि 11:35 | |
अक्टूबर (October) | शुक्ल पक्ष | पापंकुशा एकादशी | अक्टूबर 05, रात्रि 12:00 अक्टूबर 06, प्रातः 9:40 |
कृष्ण पक्ष | रमा एकादशी | अक्टूबर 20, सायंकाल 4:05 अक्टूबर 21, सायंकाल 5:23 | |
नवंबर (November) | शुक्ल पक्ष | प्रबोधिनी एकादशी, देवउठनी एकादशी | नवंबर 03, सायंकाल 7:30 नवंबर 04, सायंकाल 6:08 |
कृष्ण पक्ष | उत्पन्ना एकादशी | नवंबर 19, प्रातः 10:30 नवंबर 20, प्रातः 10:41 | |
दिसंबर (December) | शुक्ल पक्ष | मोक्षदा एकादशी, वैष्णव मोक्षदा एकादशी | दिसंबर 03, प्रातः 5:39 दिसंबर 04, प्रातः 5:34 |
कृष्ण पक्ष | सफला एकादशी | दिसंबर 19, प्रातः 3:32 दिसंबर 20, प्रातः 2:32 |